चातुर्मास के नियम  

चातुर्मास के नियम  

वैष्णव पत्रिका :- भक्ति और पवित्र कर्म के चार महीने को सनातन धर्म में ‘चातुर्मास’ कहा गया है। जप और तप करने वाले एवं सनातन को मानने वाले लोगों के लिए ये चार माह महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्थिति तो शुद्ध होती ही है, साथ ही वातावरण भी आनंदायक रहता है। चातुर्मास चार महीने की अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। उक्त चार माह को व्रतों का मास इसलिए कहा गया है कि उक्त चार माह में जहां हमारी पाचनशक्ति कमजोर पड़ती है वहीं भोजन और जल में बैक्टीरिया की तादाद भी बढ़ जाती है।

भगवान विष्णु के निद्रा काल का समय चातुर्मास कहलाता है । इन चार महीनो में संत, तपस्वी, संकराचार्य जी आदि सभी सनातन धर्म के प्रचारक एक ही स्थान पर रहकर जप और तप का कार्य करते है । इस समय में केवल व्रज यात्रा ही की जा सकती है कहा जाता है कि इस समय में भूमण्डल के सभी तीर्थ व्रज में आकर निवास करते है । चातुर्मास में नित्य खाने वाली वस्तुओं में से एक वस्तु त्यागने कि मान्यता है ।किसी प्रिय वस्तु का त्याग अधिक फलदायक माना जाता है । चौमासे के चार महिनों मे व्रत एवं कार्तिक एकादशी को उद्यापन करना श्रेष्ठ माना गया है । साधु एवं संतो के अनुसार थाली छोड़कर पत्तल में भोजन करना उत्तम कहा जाता है । सनातन परम्पराओं के अनुसार इन महीनों में घर से बाहर भोजन करने की मान्यता है । शास्त्रों के अनुसार चौमासे में निम्न चीजों का खाना वर्जित है ।

श्रावण मासः- इस मास में हरी सब्जी खाना नहीं चाहिए ।
भाद्रपद मासः- इस मास में दही खाना नहीं चाहिए ।
आश्विन मास:- इस मास में दूध पीना एवं खीर पकाना वर्जित है ।
कार्तिक मास:- इस मास में दाल नहीं खानी चाहिए ।

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