जिसके दर्शन मात्र से ही मिल जाता है पुण्य

वैष्णव पत्रिका :- भारत में वैदिक काल से ही गाय का महत्व माना जाता है। आरम्भ में आदान-प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम के रूप में गाय का उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी गौसंख्या से की जाती थी।हिन्दू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती है तथा उसकी हत्या महापातक पापों में मानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जो चौदह रत्न प्रकट हुए थे उनमे से गौ ‘कामधेनु भी एक रत्न है। पूज्य गौमाता अहिंसा, करुणा, ममत्व वात्सल्यादि दिव्य गुणों को पुष्ट करती है। गाय, गोपाल, गीता, गायत्री तथा गंगा धर्मप्राण भारत के प्राण हैं, आधार हैं। इनमें गौमाता का महत्व सर्वोपरि है। गौमाता पूजनीय है जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ । गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता। स्पर्श कर लेने मात्र से ही गौमाता मनुष्य के सारे पापों को नष्ट कर देती है।

जिस गौमाता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पाँव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया। शास्त्रों में कहा है सब योनियों में मनुष्य योनी श्रेष्ठ है। यह इसलिए कहा है कि वह गौमाता की निर्मल छाया में अपने जीवन को धन्य कर सकते हैं । गौमाता के रोम-रोम में देवी-देवताओं का एवं समस्त तीर्थों का वास है।औरंगजेब के एक नायक तैबर से गायों को बचाने के लिए पुष्कर में युद्ध हुआ, जिसमे 1700 मुग़ल सैनिक मारे गये तथा 700 मेड्लिया राजपूत बलिदान हुए पर एक भी गाय काटने नही दी । आज भी इनकी स्मृति में पुष्कर में गौ-घाट बना हुआ है। गौमाता को एक ग्रास खिला दीजिए तो वह सभी देवी-देवताओं को पहुँच जाएगा । इसीलिए धर्मग्रंथ बताते हैं समस्त देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो गौभक्ति-गोसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है ।भविष्य पुराण में लिखा है गौमाता के पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूँछ में अन्नत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियाँ, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र हैं ।
सारे भारत में कहीं भी चले जाइए और सारे तीर्थ स्थानों के देवस्थान देख आइए। आपको किसी मंदिर में केवल श्री विष्णु भगवान मिलेंगे, किसी मंदिर में श्री लक्ष्मी नारायण दो मिलेंगे। किसी में सीता राम लक्ष्मण तीन मिलेंगे तो किसी मंदिर में श्री शंकर पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, भैरव, हनुमान जी इस प्रकार छ: देवी-देवता मिलेंगे।अधिक से अधिक किसी में दस-बीस देवी-देवता मिल जाएँगे, पर सारे भूमंडल में ढूँढऩे पर भी ऐसा कोई देवस्थान या तीर्थ नहीं मिलेगा जिसमें हजारों देवता एक साथ हों। गाय में सभी 36 प्रकार के देवी-देवताओं का निवास है, तभी हमारे हिन्दू समाज में सुबह सबसे पहले गौ-ग्रास निकलने की प्रथा है।देसी गाय की? रीढ़ की हड्डी में सूर्य-केतु नामक नाड़ी होती है, जिसके द्वारा सूर्य की किरणों से अपने रक्त में स्वर्णाक्षार केरोटीन बनाती है। यह स्वर्णाक्षार गौरस में विद्यमान है जिससे गाय का दूध-दही-घृत स्वर्णआभा वाला होता है।? ऐसा दिव्य स्थान, ऐसा दिव्य मंदिर, दिव्य तीर्थ देखना हो तो बस, वह आपको गौमाता से बढ़कर सनातनधर्मी हिंदुओं के लिए न कोई देव स्थान है, न कोई जप-तप है, न ही कोई सुगम कल्याणकारी मार्ग है । न कोई योग-यज्ञ है और न कोई मोक्ष का साधन ही। गाय की हर एक चीज़ गुणकारी एवम सर्वोत्तम है । गाय के गोबर को अतिशुद्ध माना जाता है। प्राचीन समय में घर को शुद्ध करने के लिए गाय के गोबर से घर लिपे जाते थे। आज भी दूर-दराज़ के गावों में यह कार्य जस का तस चल रहा है। गौमूत्र (गाय के मूत्र) को भी घर में शुद्धी के लिए छिड़का जाता है तथा शुद्ध गौमूत्र के सेवन से पेट के विभिन्न रोगों से निजात मिलती है। छोटे शिशु को गाय का दूध पिलाने से उसका बौद्धिक विकास तीव्र गति से होता है। प्राचीन काल में चौपाल में पीपल, आँगन में तुलसी और घर में गाय को रखने का महत्व होता था। परन्तु अब घरों में गाय का स्थान कुत्तों ने ले लिया है। इस परिवर्तनशील और आधुनिक युग में महफि़ल में शराब और घर में कुत्ते का महत्त्व बढ़ गया है जो इस आडम्बरिक आधुनिक युग में स्टेटस सिंबल बन गया है, ये हमारे देश का कैसा कानून है। जो हिंदुत्व को ही खो रहा है और पाश्चात्य संस्कृति की नक़ल करता हुआ घर में कुत्तों को गौमता का स्थान दे रहा है। वैष्णव पत्रिका 

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