बीकानेर महाराजा का पाकिस्तान की ओर झुकाव

वैष्णव पत्रिका :- बीकानेर के स्वतंत्रता सेनानी दाऊलाल आचार्य ने, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् बीकानेर महाराजा का झुकाव पाकिस्तान की ओर हो जाने की एक घटना का उल्लेख किया है- वे लिखते हैं- पाकिस्तान की बहावलपुर रियासत की सीमायें बीकानेर राज्य से लगी हुई थीं जहाँ बड़ी संख्या में हिन्दू शरणार्थी फंसे पडे़ थे। सरदार पटेल उन फंसे हुए शरणार्थियो को वहाँ से निकाल कर भारत में लाने को उत्सुक थे साथ ही इन दोनों रियासतों के मध्य कुछ सीमा सम्बन्धी विवाद भी हल किया जाना थां इस हेतु पटेल ने भारत सरकार के सैन्य अधिकारी मेजर शॉट को बीकानेर भेजा। बहावलपुर रियासत के प्रधानमंत्री नवाब मुश्ताक अहमद गुरमानी को भी बीकानेर बुलाया गया।
7 नवम्बर 1947 को मेजर शॉर्ट की मध्यस्थता में दोनों रियासतों के मध्य शरणार्थियों एवं सीमा सम्बन्धी विवादों पर चर्चा हुई तथा एक समझौता भी हुआ। उसके बाद उसी दिन शाम की टेªन से मेजर शॉर्ट दिल्ली चला गया और गुरमानी को भी सरकारी रिकॉर्ड में उसी दिन बहावलपुर जाना अंकित कर दिया गया। जबकि वास्तविकता यह थी कि महाराजा सादूलसिंह ने गुरमानी को गुप्त मंत्रणा के लिए लालगढ़ में ही रोक लिया था। तीन दिन तक गुरमानी लालगढ़ में रहा। इस दौरान राजमलह का सारा स्टाफ मुसलमानों का रहा। अपवाद स्वरूप कुछ हीं हिन्दू कर्मचारियों को महल में प्रवेश दिया गया। कि वे महाराजा के अत्यंत विश्वस्त थे तथा उर्दू के जानकार भी थे। 10 नवम्बर तक गुरमानी और महाराजा सादूलसिंह के बीच गुप्त मंत्रणा चलती रहीं। इस दौरान सादूलसिंह का झुकाव पाकिस्तान की ओर हो गया किंतु कैसे कुछ किया जाये, यह सूझ नहीं पा रहा था। अंत में यह निर्णय लिया गया कि प्रायोगिक तौर पर छः माह के लिये बीकानेर रियासत के मध्य एक व्यापारिक समझौता हो। समझौता लिखित में हुआ तथा दोनों ओर से हस्ताक्षर करके एक दूसरे को सौंप दिया गया।
बृजराज कुमार भटनागर ने यह बात बीकानेर में हिन्दुस्तान टाइम्स के दिल्ली संस्करण आचार्य को बता दी। यह सामाचार 17 नवम्बर 1947 को हिन्दुस्तान टाइम्स के दिल्ली संस्करण में तथा 18 नवम्बर को डाक संस्करण में प्रकाशित हुआ जिससे दिल्ली और बीकानेर में हड़कम्प मच गया। बीकानेर प्रजा परिषद के नेताओं ने इस संधि का विराध करने का निर्णय लिया और दिल्ली जाकर भारत सरकार को ज्ञापन देने की घोषणा की। यह रक्षा से सम्बद्ध मामला था तथा संघ सरकार के अधीन आता था इसलिये सरदार पटेल ने तुरंत एक सैन्य सम्पर्क अधिकारी को बीकानेर तथ बहावलपुर की सीमा पर नियुक्त किया और बीकानेर महाराजा को लिखा कि वे इस अधिकारी के साथ पूरा सहयोग करें। बीकानेर के गृह मंत्रालय द्वारा सामाचार पत्र के संवाददाता को समाचार का स्त्रोत बताने के लिये कहा गया। उन्हीं दिनों बीकानेर सचिवालय की ओर से रायसिह नगर के नाजिम को एक तार भेजा गया। इस तार में रायसिंह नगर के नाजिम को सूचति किया गया था कि बहावलपुर रियासत से हमारा व्यापार यथावत चल रहा है। रायसिंह नगर में रेवेन्यू विभाग के भूतपूर्व पेशकार मेघराज पारीक ने वह तार नाजिम के कार्यालय से चुरा लिया और दाऊलाल आचार्य को सौंप दिया। इस तार के प्रकाश में आने के बाद बीकानेर राज्य का गृह विभाग शांत होकर बैठ गया।
महाराजा बीकानेर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित इन खबरों का विरोध करते हुए भारत सरकार को लिखा कि बीकानेर प्रजा परिषद और बीकानेर राज्य के सम्बन्ध ठीक नहीं है इसलिये प्रजा परिषद के एक कार्यकर्ता ने जो हिन्दुस्तान टाइम्स का संवाददाता भी है, इस खबर को प्रकाशित करवाया हैताकि बीकानेर राज्य पर दबाव बनाकर उसे उपनिवेश सरकार द्वारा अधिग्रहित कर लिया जाये। क्या प्रजा परिषद बीकानेर राज्य को जूनागढ़ तथा हैदराबाद के समकक्ष में दोषी व्यक्तियों के विरूद्ध कार्यवाही करने में सहायता करें तथा एक अधिकारिक बयान जारी करके इस आरोप को निरस्त करें।
इस पर रियासती विभाग ने एक वक्तव्य जारी करके स्थिति स्पष्ट की तथा बीकानेर महाराजा पर लगे इस आरोप को अस्वीकार कर दिया। इस वक्तव्य में कहा गया कि कुछ समाचार पत्रों में इस आश्य के सामाचार प्रकाशित किये गये हैं कि बीकानेर, पाकिस्तान एवं बहावलपुर के मध्य एक व्यापारिक संधि हुई हैं। यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि यह सामाचार पूर्णतः आधारहीन है। ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ है। बहावलपुर के मुख्यमंत्री सीमा के दोनों तरफ रह रहे शरणार्थियों में भय फैलने से रोकने के लिये किये जा रहे प्रयासों के लिये मैत्री यात्रा पर आये थे।
सत्यनाराण पारीक ने लिखा है- बीकानेर के अंतिम महाराजा सादूलसिंह ने अंतरिम सरकार बनाकर आंशिक मात्रा में सत्ता जनता को सौंपी अवश्य पर रियासत को अलग इकाई रखने हेतु जो पापड़ बेले और दुरभिसंधियां कीं, उनकी सूचना दाऊलाल आचार्य एवं मूलचंद पारीक ने यथा समय उच्चस्थ विभागों को पहुंचायी, वह देशभक्ति की अनोखी मिसाल हैं। उसी के कारण बीकानेर रियासत भारत में रह गयी। वैष्णव पत्रिका 

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